शनिवार, 1 जुलाई 2017

सम्मान, गुटिंग, और टोपाबाजी छोड़ो, ब्लॉगिंग से नाता जोड़ो

आदमी लेथन फैलाने से बाज नहीं आता।  अगर आ गया तो उसकी कोटि बदल जाती है।  चाहे धरतीलोक पर रहे या चंद्र लोक पर या कल्पनालोक किसी भी लोक में रहे अपनी खुराफात से बराबर सिद्ध किये  रहता है कि वो आदमी ही है।  हमारे मास्साब बाबू लालमणि सिंह अक्सर कहते थे कि गलती कर सुधरने वाला प्राणी आदमी ही होता है।  जिसे गलती की समझ नहीं वह गदहा होता है।  क्लास में ऐसे कितने गदहों के नाम वह एक सांस में गिना देते थे।  आज का दिन  हिंदी  ब्लॉगिंग  दिवस के रूप में मनाया  जा रहा है तो एक बात तो तय है कि आज अगर बाबू लालमणि सिंह मौजूद होते तो गिन कर बताते कि 'कितने आदमी थे ' ।   

गब्बर सिंह भी यही बार बार पूछते रहे पर कालिया में तो बाबू लालमणि की आत्मा घुसी थी सो दुइये बता पाए काहे से कि जय और वीरू को अपनी गलती का एहसास हो गया था बेचारे खुद को सुधारना चाहते थे पर इस चक्कर में कालिया का बलिदान हो गया। खैर ब्लॉग जगत  कालिया की गति को प्राप्त होने वाला था कि अपने साम्भा यानी खुशदीप भाई ने दूरबीन लगाके देख लिया कि 'रामगढ़' में रामपुरिया  जैसे आदमी हैं। वहीँ से ललकार लगाई और सारे जोधा  फटाक से तुरतई  आदमी बन गए  और फटाफट  ब्लॉग दिवस का ताना बाना बन गया। 


सारे लोग टंकी से उतर आओ।  जइसे एक फेसबूकिया ब्लॉग लिखने लगे समझो ब्लॉग का सतजुग आई गवा।  तुरतई समझो कि गदहे आदमी बन रहे हैं।  अरे हियाँ लिखकर कुछ कमाई धमाई भी हुई जाए।  फिर बसंती के तांगे  पर बैठ के गाना गाते रहना... टेशन से गाडी जब छूट जाती है ... पर पहिले पोस्टिया ल्यो फिर कोई उधम मचईयेगा। ब्लॉग से भागने का एक  कारण ये भी था कि सम्मान, गुटिंग, और टोपाबाजी चरम पर पहुँच गयी थी।  ये सब बातें खेलने कूदने  तक के लिए ठीक हैं पर इन्ही को लेकर पोस्ट पे पोस्ट पेलने और कुतरपात करने ब्लॉगिंग स्खलित हुयी है सुन ल्यो।  सो इन सब से बच गए तो ब्लॉगिंग  के पुराने  और सुहाने  दौर की नदी पुनर्जीवित हो जायेगी। 



बाकी हम आपन जुम्मेदारी लेते तुम पंचन के तुम जानो । 

जय जोहार जय ब्लॉगिंग।  


#हिंदी_ब्लॉगिंग