रविवार, 26 फ़रवरी 2017

बलम तुम निकले पानी के बोल्ला।

सिपहिया के भेसे में ठोल्ला
बलम तुम निकले पानी के बोल्ला।
छागल लियावे के बातें कहे थे
हमका सजावे के बातें कहे थे 
पहिनाए दिहे भंईसी के चोल्ला
बलम तुम निकले पानी के बोल्ला।
खाझा बताशा मिठाई की बातें
हमसे किहे रस मलाई की बातें
लेबिनचूसो न मिला बकलोल्ला
बलम तुम निकले पानी के बोल्ला।
सूरत तोहार यस कच्चा करइला
निमकउडिया के जइसन कसइला
बस बातें तोहार रस गोल्ला
बलम तुम निकले पानी के बोल्ला।

कामै खाली बोलत है।

धेला भर कछु करें धरें ना कामै खाली बोलत है।
इस्कूले से हस्पताल तक दामै खाली बोलत है।
ठेका उठिगै मनरेगा के बालू बिकी सोन के भाव
नेताजी के घर मा द्याखो जामै खाली बोलत है।
रोजा रखि रतजगा करावें सेकुलरई में जोड़ नही
रतिया कोकिल बोले मुरगा घामै खाली बोलत है।
नाम लिखा है माननीय का उदघाटन के पाथर पे
अगले रोज भसकि गै पुलिया झामै खाली बोलत है।
लालटेन भी रौसन नाही लरिका कईसे करें पढ़ाई
समाजबाद के पूत बिलाइत नामै खाली बोलत है।

हरियराना हमारी विरासत है

तुमने कहा ये वक्त तुम्हारा है
यह वक्त है तुम्हारे द्वारा आग लगाने का
आंधिया उठाने का
कच्ची खड़ी फसलों को बूटों से रौंद डालने का
घरों की दीवारो को ढहा देने का
जो चाहे मर्जी कर दो क्योंकि
तुमने कहा कि ये वक्त तुम्हारा है।
हमने होंठ सी लिए
तुम खुश हो जाओ और धरती पलट दो
हमे इन्तजार है उस वक्त का
जब तुम आग मूतोगे
उसी दिन हम हल लेकर निकलेंगे
तुम्हारी पलटी जमीन जोतने और बीज बोने
हमें इन्तजार है पछुआ हवाओं का
जब तुम्हारी लगाई आग जार देगी तुम्हारे ही छप्पर
हम उस राख से फ़स्ले उपजाऊ करेंगे
तुम्हारे मूतने को यूरिया में बदलकर
तिगुनी फसल घर ले आएंगे।
सुना नही तुमने हमारे पुरखे बांस थे
जिन्होंने डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड में
पक्के पोढे से लिखा कि
कीचड़ और कचरे के ऊपर कैसे
हचक कर जमा जाता है
हरियराना हमारी विरासत है
जिसे कोई कहके नही ले सकता।
तुम शायद आभास भी नही कर पाओगे
शक्ति बन्दूक से कभी नही निकली
शक्तिपुंज का पता घुटना और कमर नही
तुम जानते नही भोले मानुस
शक्ति का पता तो शिवत्व में है
देह को बैताल बनाये अपने कन्धे पे ढोने वालों
हम शान्ति और संतुलन से अभिमन्त्रित रहे हैं।
सिलटी दुपटी धोती और दो मुट्ठी चावल पर
हार गए थे तुम्हारे दोनों ऐश्वर्यलोक
ढाई पग और तुम्हारे आकाश पाताल
पीठ भी नही बची थी
भौतिक सुखों की ऋचाएं बनाते समय हमने गढ़ा
अपनी नियति 'केवल भिच्छा'
हमने उदघोष किया था विश्व का कल्याण हो।
सुनो परजीवी नम्बरदारों!
तुम घात लगाने की तैयारी में हो
किन्तु हम धान और गेहूं लगाने में व्यस्त हैं
अभी हमे नदियों का आँचल भरना है
फूलोे वाले खेतों को सींचना और गीत लिखने है
चाँद को तालाब में धोकर पलाश में सूरज भरना है
अरे कृतघ्नों !
हम रोटी बनाना बन्द नही करेगे
हमें तुम्हारे पेट की फ़िक्र है।