शनिवार, 30 अप्रैल 2016

सहरिया से आई जाओ बलमू

नून जईसे गले है उमरिया सहरिया से आई जाओ बलमू
सून भईले कब से बखरिया सहरिया से आई जाओ बलमू

ओही सहरिया में उज्जर अन्हरिया
ओही सहरिया में उज्जर अन्हरिया,

अंगना में उतरी अंजोरिया सहरिया से आई जाओ बलमू
सून भईले कब से बखरिया सहरिया से आई जाओ बलमू

ओही सहरिया में लाला के नोकरिया
ओही सहरिया में लाला के नोकरिया,  

ऊसर कईले खेत कियरिया सहरिया से आई जाओ बलमू
सून भईले कब से बखरिया सहरिया से आई जाओ बलमू

ओही सहरिया में बईठी है सवतिया
ओही सहरिया में बईठी है सवतिया,

कहाँ गईले चंदा के चकोरिया सहरिया से आई जाओ बलमू
सून भईले कब से बखरिया सहरिया से आई जाओ बलमू

नून जईसे गले है उमरिया सहरिया से आई जाओ बलमू
सून भईले कब से बखरिया सहरिया से आई जाओ बलमू






डॉ. पवन विजय के ११ मुक्तक

 मुक्तक 
1.
वासनाओं का जंगल शिवालय हुआ।
साम के गान का संग्रहालय हुआ।।
तेरे अधरों नें जब कर लिया आचमन
देह गंगा हुयी मन हिमालय हुआ।।

2.

जिसे ढूंढते जोगी रागी बस्ती बस्ती परबत परबत।
स्वर्णहिरन के अंतर्मन में कस्तूरी का नाम मुहब्बत।
मौसम पढ़ता गया रुबाई होंठ नदी के हुए सरगमी,
सूरज पर गेसू बिखरा कर रातें करती रहीं इबादत।

3.
फूल खिले हैं ताजे या तुम अपने होंठ भिगोये हो।
बारिश की बूंदे छिटकी हैं या तुम आँचल धोये हो।
पिघल रही है आज चांदनी जबकि हमारी आहों से,
हवा हुयी है गीली सी क्यों शायद तुम भी रोये हो
4.
पारिजाती गंध लिए महक रही बांसुरी।
अधर को  दबाये हुए पुलक उठी सांवरी।
आज लाज सो गयी स्नेह भरे अंक में,
चाँद जागता रहा और रात हुई माधुरी।

5.
जो दिल हारा हो उसके सामने फ़रियाद क्या करते,
मुसलसल टूटते वादों को फिर हम याद क्या करते।
किसी के कांपते होंठो ने मुझसे  कह दिया इक दिन  ,
नही थे तुम तो महफिल को सनम आबाद क्या करते।

6.
मैंने अंतिम विदा कह दिया फिर तुम जानें क्यों आये।
विष पीकर के प्यास बुझाई तुम अमृत घट क्यों लाये।
मधुमास उतारा क्या करते कुछ बची खुची सी साँसों पे,
जब मैंने पतझर स्वीकारा फिर तुम फागुन क्यों लाये।

7.
धूप ने लिए जो बोसे गुनगुनाए होंठ झील के।
हवायें हुयीं हैं शरबती जलप्रपाती गीत बोल के।
फ़िज़ाओं में फिर लौटे प्यार के हजार मौसम,
खुश्बुयें हुयीं हैं तरबतर जुल्फ तुम्हारी खोल के।

8.
तिश्नगी बुझती भी कैसे आब खारा रह गया
एक जूडस चूम के जीसस को प्यारा कह गया 
खेल सारा ख़त्म है अफ़सोस इतना जानेमन 
मैं समन्दर बाँध देता पर किनारा बह गया

9.

तुम ही थी उन बातों मेंसारा पर्याय तुम्हारा था। 
मेरी सारी परिभाषाओंका अभिप्राय तुम्हारा था।
मधुमासी रुत रही कुंवारी प्यासा बीत गया सावन
होंठ मगर कह सके नही कि जीवन हाय तुम्हारा था।

10.
टूटे स्वर हैं बिखरी लय पर साज उठाओ।
बड़ी घुटन है पुरवा को आवाज लगाओ।
नदी हो गयी रेत आचमन प्रतिबंधित है,
मेघों को मल्हार कोई तो आज सुनाओ।

11.
बचा कर चींटियों को रास्ते पर पाँव रखते हैं।
पाथर पूज लेते हैं कि पीपल छाँव रहते हैं।
हमारे बाग़ की ठण्डी हवा में एक डुबकी लो
कि चारो धाम के तीरथ हमारे गाँव रहते हैं।





महुवा चुवत आधी रैन हो रामा



चईता का रसास्वादन करिये...
++++
महुवा चुवत आधी रैन हो रामा,
चईत महिनवां।
महुवा चुवत आधी रैन हो रामा,
चईत महिनवां।
रस बरसत आधी रैन हो रामा,
चइत महिनवां।
रस बरसत आधी रैन हो रामा,
चइत महिनवां।
रतिया की बेरिया फूलत है अँजोरिया।
रतिया की बेरिया फूलत है अँजोरिया।
मन महकत आधी रैन हो रामा,
चईत महिनवां।
छुवेला परनवां रे पछुआ पवनवां।
छुवेला परनवां रे पछुआ पवनवां।
देहिंया लसत आधी रैन हो रामा,
चईत महिनवां
पापी बभनवां धरावे ना सुदिनवां।
पापी बभनवां धरावे ना सुदिनवां।
जियरा जरत आधी रैन हो रामा,
चईत महिनवां।
....@डॉ पवन विजय