रविवार, 15 मार्च 2015

कान्हा पागल रोयेगा।।

प्यासी प्यासी नदी रहेगी जंगल जंगल रोयेगा।
सागर सा तन लिये उदासी मन गंगाजल रोयेगा।।

बहते दरिया को गर यूँ  ही जंजीरों में बाँधोगे,
जिस दिन सावन आयेगा उस दिन ये बादल रोयेगा।।

कभी नही लौटा बेटा जिस दिन से जा परदेस बसा, 
अबकी बारिश में भी अम्मा का फिर आँचल रोयेगा।।

सुना कि फिर से जहर पिया है इक दीवानी मीरा ने,
उस पगली के नाम से अब ये कान्हा पागल रोयेगा।।

जब जब दो दिल प्यार करेंगे याद तुम्हारी आयेगी ,
मेरी आँखे हँस देंगी पर तेरा काजल रोयेगा।।

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (16-03-2015) को "जाड़ा कब तक है..." (चर्चा अंक - 1919) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

रंजू भाटिया ने कहा…

सुंदर लफ्ज़ सुंदर भाव



Manoj Kumar ने कहा…

सुन्दर पंक्तियाँ !

मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत ह

Manoj Kumar ने कहा…
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