सोमवार, 14 जुलाई 2014

सारा पनघट रीत गया।

सब कुछ छूटा धीरे धीरे जीवन ऐसे बीत गया
सागर बनते बनते मन का सारा पनघट रीत गया। 

चाँद पे जा अँटका जो उछला सिक्का अपनी किस्मत का 
वक्त जरा दम ले लेने दे, मैं हारा तू जीत गया। 

ना दरिया में डूबा ना ही बदली से बरसात हुयी
फिर भी जाने कैसे जिस्म का, कतरा कतरा भीग गया।

सच कहने वालों को जबसे भूको मरते देखा है
ज़िंदा रहने की खातिर मैं झूठ बोलना सीख गया।