शुक्रवार, 3 मई 2013

ब्लागिंग के धन्धेबाज बनाम ट्रैवल एजेंट: एक विश्लेषण

आपने कभी ट्रैवल कम्पनियो का नाम सुना है? ये कम्पनिया एक निश्चित पैकेज पर आपको घूमने फिरने, होटलिंग, मौज करने का साधन मुहैया कराती है. विश्व मे कही घूमना हो इनसे सम्पर्क कीजिये और घूमिये. आजकल इन कम्पनियो से प्रेरणा प्राप्त कर साहित्य, समाजसेवी, ब्लागिंग के धन्धेबाज   लोग पैकेज बना कर 'एकेडेमिक' 'साहित्यिक' या 'सामाजिक' सरोकारो की आड लेकर पौ बारह कर रहे है. आपसे अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम के नाम पर मोटी रकम वसूली जायेगी और फिर ट्रैवल एजेंटो से साठ गांठ कर के सस्ते मद्दे  मे घुम्मी करा दी जायेगी, ल्यो आप अंतर्राष्ट्रीय ठप्पा लगवा लिये.
आप भी महान होने का गुरु गम्भीर चेहरा लिये वापस आते है. फिर अपने उस 'प्रवास' का हवाला बात बात मे देने लगेंगे.वास्तव मे है क्या कि पेड कार्यक्रम और पुरस्कारो से नये लेखक या 'ईनाम' के लिये मुह बाये लोगो को लगने लगता है कि वे ही पूर्वजनम मे शेक्सपियर और कालीदास रहे होंगे. इसी चक्कर मे अपने को लुटवा कर सम्मानित लेखक का तमगा जडवा लेते है और उसे सीने से चिपकाये अईसे घूमते है जईसे कोई पगलेट कूडे  को लेके खुद से चिपकाये घूमता है और रद्दी को 'एसेट' समझता है.
लोभ लालच के चक्कर मे लोगो ने अपना बहुत नुकसान किया है और धन्धेबाजो ने इस भावना को पहचान कर इसका खूब दोहन भी किया है.ताजा मिसाल ब्लागिंग मे चल रहे 'पेड कार्यक्रमो' की है. ब्लागिंग के नये खलीफा लोग अंतराष्ट्रीय ब्लागिंग के नाम पर जो झोल तैयार कर रहे है उससे लगता है कि मुर्गे काफी फंसेगे, खास बात यह है कि ये मुर्गे अपनी खुशी से अपने को हलाल करवायेगे. तुलसी बाबा बहुत पहिले ही लिख गये थे कि जिसको दूसरे का धन हरण करने की विद्या आती है वही इक्कीसवी सदी का गुनवंत ज्ञानी होगा. तो आज उस  'परिकल्पना'  को सत्य सिद्ध होता हुआ हम देख सकते है.
बहरहाल कुलीन/ मठाधीश और स्वयम्भू/ब्रम्हा बनने के चक्कर मे त्रिशंकु की ही गति मिलती है. लोकतंत्र अपना रास्ता ढूंढ लेता है...
भगवान इन धन्धेबाजो और दलालो से ब्लागिंग साहित्य  को बचाये ऐसी कामना करता हू.